लेखनी कहानी -01-Sep-2022 सूर घनाक्षरी विधान,२- हिन्दी हमारी शान 3- शिक्षक समाज का दर्पण, 4-श्रद्धेयभ

हिन्दी भाषा का तत्व


 हिन्दी दिवस के दिन हम प्रतिज्ञा करें कि राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार कर राष्ट्रीय भावना को हम सुदृढ़ करेंगे। जानिए कुछ बड़ी बातें...
 
प्रत्येक मनुष्य दो आंखों से देखता है। भारत जैसे विशाल राष्ट्र के निवासी के पास भी दो आंखें चाहिए। ये दो आंखें हैं - 1. अपने प्रांत की भाषा 2. सारे देश के लिए परस्पर व्यवहार की भाषा। 
 
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है। राष्ट्र के गौरव का यह तकाजा है ,कि उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा हो। कोई भी देश अपनी राष्ट्रीय भावनाओं को अपनी भाषा में ही अच्छी तरह व्यक्त कर सकता है।
 
भारत में अनेक उन्नत और समृद्ध भाषाएं हैं किंतु हिंदी का सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र है। और सबसे अधिक लोगों द्वारा समझी और बोली जाने वाली भाषा है।

 
सर्वोच्च सत्ता प्राप्त भारतीय संसद ने देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को राजभाषा के पद पर विराजमान किया है। अब यह संपूर्ण भारत की जनता का फैसला है। 
 
संसार में चीनी तथा अंग्रेजी के बाद हिन्दी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली  विशाल जनसमूह की भाषा है।
 
सभी प्रांतों में प्रांतीय भाषाएँ जनता तथा सरकारी कार्य का माध्यम होंगी, लेकिन केंद्रीय और अंतरप्रांतीय व्यवहार में राष्ट्रभाषा हिन्दी में ही कार्य होना आवश्यक है।
 
प्रादेशिक भाषाएँ तथा राष्ट्रभाषा हिन्दी दोनों एक-दूसरे की संबंधित हैं। एक-दूसरे के सहयोग से वे अधिक समृद्ध हो जाती है।

 प्रादेशिक हिन्दी और राष्ट्रीय हिन्दी कोई अलग नहीं। जिसे आज हिन्दी कहते हैं, वही राष्ट्रभाषा है और उत्तरोत्तर विकास करके समृद्ध एवं गौरवशाली बनेगी।
 
हिन्दी केवल हिन्दी भाषियों की ही भाषा नहीं रही, वह तो अब भारतीय जनता के हृदय की वाणी बन गई है। हमारी मातृभाषा हमारी पहचान है।

 
हिन्दी का प्रचार करना अपने राष्ट्र का प्रचार करना है। हिन्दी किसी पर न तो जबर्दस्ती लादी जा रही है और न लादी जाएगी। वह तो प्रेम का प्रतीक है। भारतवासी हिन्दी से बहुत प्यार करते हैं।

 कोई भी भाषा चाहे वह किसी की भी भाषा है, यदि वह जनता में प्रचलित है, तो वह राष्ट्रभाषा हिन्दी का शब्द है। आगे भी हिन्दी विभिन्न भाषाओं से शब्द-राशि लेकर समृद्ध बनेगी। 
 
राष्ट्र की एकता के लिए जैसे एक राष्ट्रभाषा होना आवश्यक है, उसी प्रकार एक लिपि का होना भी आवश्यक है। देवनागरी लिपि में वे सभी गुण उपस्थित हैं, जो किसी वैज्ञानिक लिपि में होने चाहिए। अत: समस्त प्रादेशिक भाषाओं की एक नागरी लिपि हो, यह आवश्यक है।
 
लोग कहते है, कि दक्षिण में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्‍या अधिक है? वहां अंग्रेजी जानने वालों से  पांच गुना ज्यादा हिन्दी जानने, बोलने तथा समझने वाले हैं।
  
अंग्रेजी को बोलना पढ़ना  हमारी शान और इज्जत के साथ हिन्दी का सम्मान हमारे देश में रहने वालों के बीच बहुत जरूरी है। इस देश में केवल अंग्रेजी जानने वालों का राज नहीं रह सकता।

अतः हम भारतवासी है, हिन्दी हमारी जान है, आन ,बान और शान है, आसान है, हिंदी में हम सब अपने भाव को प्रदर्शित कर पाते हैं यही तो बड़ा ही सुखद होता है।

अलका गुप्ता'प्रियदर्शिनी' 
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्व रचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।

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6 Comments

Supriya Pathak

17-Sep-2022 11:46 PM

Achha likha hai 💐

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Achha likha hai 💐

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बहुत ही सुंदर रचना

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